माइंडफुलनेस-बेस्ड न्यूरो-लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग (एम.बी.एन. एल.पी.) क्या है?
१९९२ में एक अलग किस्म के कॉलरा की बीमारी भारत में फैल रही थी । राजनेता और स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस बीमारी से निपटने में मिली असफलता के लिए एक दूसरे की तरफ अंगुली उठा रहे थे । यह बीमारी दूषित एवं गंदे पानी से फैल रही थी । भारत सरकार एवं वैज्ञानिकों के मन में एक ही सवाल था, देश के सुदूर इलाकों में किस तरह से पीने के पानी को बेहतर बनाया जाए?
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उस वक्त गवर्नमेंट के अलग-अलग विभाग एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे थे, तब अशोक गाडगिल नामक एक साइंटिस्ट इस समस्या का समाधान खोजने का प्रयास कर रहे थे । उन्हें कुछ ऐसी ख़ोज करनी थी, जिससे कम से कम पैसों में दूषित पानी शुद्ध हो सके । कुछ इस तरह का अविष्कार जिसमें महंगे केमिकल्स और पानी को उबालने के लिए जरूरी इंधन खर्च ना हो । उन्हें पता था, ‘अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन’ बैक्टीरिया को मार गिराता है, जिससे पानी शुद्ध हो सकता है । उन्होंने स्टैंडर्ड फ्लोरोसेंट लाइट बल्ब का आवरण निकाला और बल्ब को दूषित पानी के ऊपर थोड़ी देर के लिए पकड़कर रखा । इससे आश्चर्यकारक घटना घटी, कुछ ही पलों में बैक्टीरिया मर गये और पानी शुद्ध हो गया ।
जब दूसरे लोग झगड़ रहे थे, एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे, पानी शुद्ध करने के लिए बड़ी और महंगी मशीने लाने की बात कर रहे थे, रिसर्च फंडिंग के बारे में सोच रहे थे, ग्रामीण इलाके में इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने की बात कर रहे थे, तब गाडगिल ने पानी शुद्ध करने के लिए एक नया रास्ता खोज निकाला था । उन्होंने कुछ बेहद साधारण चीजों से कुछ असाधारण संयोग निर्मित किये और समस्या हल हो गयी ।
अब सवाल यह है कि यह असाधारण संयोग किस तरह से निर्मित हुआ? यह रचनात्मक सोच उनके मन में कैसे निर्मित हुई? उनके भीतर कौन सी ऐसी ताकत छिपी थी, जिसके चलते इतनी बड़ी समस्या को उन्होंने बड़े ही आसानी से हल कर दिया? सबसे महत्वपूर्ण सवाल, पानी को शुद्ध करने के लिए फ्लोरोसेंट लाइटबल्ब का आवरण निकालकर उसे दूषित पानी के ऊपर थोड़ी देर के लिए पकड़ने का विचार उनके मन में किस तरह से आया?
इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें न्यूरोसाइंस के बारे में थोड़ा जानना होगा । हाल ही में हुए रिसर्च के आधार पर कुछ न्यूरोसाइंटिस्ट हमारे भीतर घटने वाली दो भिन्न मानसिकताओं का वर्णन करते हैं । पहली मानसिकता को वे रिफ्लेक्टिव माइंड (चिंतनशील मन - विचारों के ऊपर विचार करने की मानसिकता) और दूसरी मानसिकता को डायरेक्ट माइंड (प्रत्यक्ष मन या वर्तमान में मौजूद होने की मानसिकता) कहते हैं ।
रिफ्लेक्टिव माइंड (चिंतनशील मन - विचारों के ऊपर विचार करने की मानसिकता) में वह सब कुछ आता है, जो हमारे दिमाग में घटता है । हमारे दिमाग में चलने वाला मोनोलॉग - खुद के साथ संवाद, हमारे विचार, हमारी स्मृतियाँ, हमारी योजनाएँ, हमारे ख्वाब, हमारी कल्पनाएँ, हमारे सृजनात्मक विचार, इत्यादि । हमारे रिफ्लेक्टिव माइंड का हिस्सा होते हैं । संक्षेप में, हमारी सारी मानसिक गतिविधियाँ, हमारे रिफ्लेक्टिव माइंड का हिस्सा होती हैं । हमारे रिफ्लेक्टिव माइंड की ताकत से ही सारे इनोवेशन और रचनात्मक कार्य संभव होते हैं । हमारे मन की इसी ताकत के चलते अशोक गाडगिल के दिमाग में पानी को साफ करने के लिए स्टैंडर्ड फ्लोरोसेंट लाइट बल्ब को इस्तेमाल करने के विचार ने जन्म लिया ।
इस रिफ्लेक्टिव माइंड को एक अन्य उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं ।
रमेश ने ६ महिने पहले धूमधाम से बिजनेस शुरू किया था, जो आज की तारीख में चौपट हो चुका है । इस बिजनेस में रमेश ने १० लाख रुपए गवाएँ । मान लीजिये कि अब रमेश इस घटना के ऊपर सोच रहा है ।
मैंने इस बिजनेस में १० लाख रुपए गवाएँ । (प्राथमिक सोच)
पिछली बार भी जब मैंने बिजनेस किया था, तब भी मैं असफल हुआ था । (सोच के ऊपर सोच)
मुझे नहीं लगता कि इस घाटे से मैं कभी निकल पाऊंगा । (सोच के ऊपर और एक सोच)
मैं एक असफल बिजनेसमैन हूँ । (सोच के ऊपर और एक सोच)
इस घटना के कारण मेरी ज़िन्दगी तबाह हो चुकी है । इस तरह की असफल ज़िन्दगी जीने का क्या फायदा? (सोच के ऊपर और एक सोच)
सिर्फ बिजनेस ही नहीं, व्यक्तिगत तौर पर भी मैं एक असफल इंसान हूँ । (सोच के ऊपर और एक सोच)
यह जो ‘सोच के ऊपर सोच’ है, इसे रिफ्लेक्टिव माइंड कहा जाता है, यह सिर्फ और सिर्फ इंसानी दिमाग ही कर पाता है । अगर आपने कुत्ते के पिल्ले को पीटा, तो वह ५ वर्ष तक आपसे बदला लेने की तैयारी नहीं करता । किन्तु यह काम इंसानी दिमाग आराम से कर लेता है, क्योंकि हमारे पास रिफ्लेक्टिव माइंड है, यानी हम विचारों के ऊपर विचार करने में सक्षम है । जब यह रिफ्लेक्टिव माइंड सकारात्मक तरीके से काम करता है, तो सृजनात्मकता जन्म लेती है और जब यह रिफ्लेक्टिव माइंड नकारात्मक तरीके से काम करने लगता है, तो ज़िन्दगी विनाश की ओर बढ़ने लगाती है ।
अब कुछ पलों के लिए आपको अपने अतीत के बारे में सोचना है । आपके अतीत से जुड़े हुए सबसे निराशाजनक पल कौन से हैं? आप उन पलों में क्या सोच रहे थे? आपके दिमाग में क्या चल रहा था? आगे पढ़ने से पूर्व इन सवालों के उपर कुछ सोचिए ।
उन निराशाजनक पलों में जो कुछ भी आपके दिमाग में चल रहा था, वह नकारात्मक रिफ्लेक्टिव माइंड में अटक जाने का एक बेहतरीन उदाहरण है । उन पलों में आपके विचारों ने ही आपको थका डाला होगा, शायद आप को तोड़ कर रख दिया होगा । आपने इन विचारों को रोकने का प्रयास जरुर किया होगा, पर बहुत कम संभावना है कि इस नकारात्मक रिफ्लेक्टिव माइंड से आपको जल्दी छूटकारा मिला हो । आपने शायद किसी को फोन लगाया होगा, दोस्त से मिलने चले गये होंगे, टेलीविज़न देखना शुरू कर दिया होगा, मन बहलाने का प्रयास किया होगा, पर कुछ ही पलों में आपने फिर से उन विचारों के चंगुल में स्वयं को फसा पाया होगा ।
तो अब सवाल यह है कि क्या हम इस रिफ्लेक्टिव माइंड को नियंत्रित कर उसे दिशा दे सकते हैं?
जवाब जानने से पहले डायरेक्ट माइंड (प्रत्यक्ष मन या वर्तमान में मौजूद होने की मानसिकता) को समझ लेते हैं । डायरेक्ट माइंड का मतलब है, वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है, आप उसके साथ मौजूद है । आप अपने भीतर कोई विचार नहीं कर रहे हैं, ना ही भविष्य के बारे में कोई योजना बना रहे हैं और ना ही अतीत में घटी किसी घटना के ऊपर सोच रहे हैं । आप सिर्फ और सिर्फ वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है, उसका अनुभव ले रहे हैं ।
जब हम डायरेक्ट माइंड के साथ होते हैं, तब हम अतीत तथा भविष्यकाल से मन को निकाल लेते हैं और वर्तमान में उपस्थित होते हैं । वर्तमान में जो कुछ भी घट रहा है, हम उसके प्रति जिज्ञासा या उत्सुकता से भर जाते हैं । घटना के प्रति हमारे मन में कोई पूर्वाग्रह नहीं होता, जो कुछ भी घट रहा है, उसका हम खुले दिल से स्वागत करते हैं । घटने वाली घटना के प्रति हमारे भीतर स्वीकार का भाव होता है और प्रेम पूर्वक नजरों से हम उस घटना को देखते हैं, चाहे घटना कोई भी हो । संक्षेप में, डायरेक्ट माइंड के साथ हम इस क्षण में जीने का आनंद लेते हैं ।
शायद आप कहेंगे कि मैं इस क्षण में ध्यान देने के अलावा दूसरा कुछ नहीं करता हूँ । अगर मैं इस क्षण में ध्यान नहीं दूंगा तो गाड़ी कैसे चला पाऊंगा, ईमेल के जवाब कैसे दे पाउंगा, खाना कैसे बनाऊंगा और ढेर सारी दूसरी एक्टिविटीज कैसे कर पाऊंगा ।
अब सोचिए, जब आप सुबह ऑफिस के लिए निकले, तब गाड़ी चलाते वक्त क्या आप सिर्फ गाड़ी चलाने का आनंद ले रहे थे या कुछ सोच रहे थे? अगर आप ट्रेन से ऑफिस जाते हैं या बस से जाते हैं, तो क्या आप सिर्फ बैठे हुए थे या बैठे-बैठे कुछ सोच रहे थे? सुबह आपने कॉफी ली, तो क्या आप कॉफी के हर घूंट का अनुभव ले रहे थे या कॉफी पीते हुए विचारों में खो गये थे?
यदि हमें ज़िन्दगी का आनंद लेना हैं, तो हर पल भटकने वाले इस रिफ्लेक्टिव माइंड को नियंत्रित करते हुए, डायरेक्ट माइंड का अनुभव भी लेना होगा ।
तो अब सवाल यह है, कि ज़िन्दगी के हर पल को आनंद के साथ अनुभव करने के लिए क्या हम इस डायरेक्ट माइंड का या वर्तमान में रहने का अभ्यास कर सकते हैं?
जवाब जानने से पहले अब तक आपने जो पढ़ा उसका निष्कर्ष एवं एक सवाल । हम ने रिफ्लेक्टिव माइंड और डायरेक्ट माइंड की परिभाषाएँ देखीं । रिफ्लेक्टिव माइंड का मतलब हुआ चिंतनशील मन यानी विचारों के ऊपर विचार करने की मानसिकता और डायरेक्ट माइंड का मतलब हुआ प्रत्यक्ष मन या वर्तमान में मौजूद होने की मानसिकता । अब सवाल इस तरह है, कि रिफ्लेक्टिव माइंड और डायरेक्ट माइंड इन दोनों में से कौन सा माइंड बेहतर है? आगे पढ़ने से पहले, थोड़ा रुककर इस सवाल पर सोचिए ।
जवाब आसान है, अगर हमें एक सफल, आनंद और संतोष से भरा जीवन जीना है, तो हमें रिफ्लेक्टिव माइंड और डायरेक्ट माइंड दोनों की जरूरत है । आमतौर पर होता यह है कि हम विचारों के ऊपर विचार करने में तो सक्षम हो जाते हैं, पर उन्हें किस तरीके से नियंत्रित किया जाए, यह हमें पता नहीं होता । इसीलिए हमारे विचार ही हमारी ज़िन्दगी को नरक बना देते हैं । हम अपने विचारों में इतना अटक जाते हैं कि ज़िन्दगी जीने के लिए हमारे पास समय ही नहीं बचता ।
यही नहीं वर्षों से हम विचारों के ऊपर विचार कर रहे हैं, फिर भी विचार तैयार कैसे होते हैं, विचारों का स्ट्रक्चर क्या होता है, अगर विचारों को बदलना है, तो कैसे बदला जाए, यह हमें पता नहीं होता । हमें सिर्फ इतना बताया जाता है कि विचारों को बादलों, किन्तु उन विचारों को किस तरह से बदला जाए इस पर कोई बात नहीं होती । यही कारण है कि हमारा रिफ्लेक्टिव माइंड ही हमारी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी समस्या बन जाता है ।
सिर्फ रिफ्लेक्टिव माइंड को नियंत्रित कर उसे दिशा देने से काम नहीं होगा, उसके साथ हमें डायरेक्ट माइंड यानी वर्तमान में उपस्थित होने का अभ्यास भी करना होगा । हर वक्त चलने वाले विचारों के कारण हमारा वर्तमान से नाता टूट चुका होता है । हम सिर्फ खयालों की दुनिया में जीने लगे हैं । हमारे लिए विचार ही सब कुछ बन चुके हैं । जो विचार यानी रिफ्लेक्टिव माइंड हमारे स्वर्णिम भविष्य की बुनियाद बन सकते थे, वे विचार ही हमारे पैरों की बेड़ियाँ बन चुके हैं । हमें इन विचारों से थोड़ा मुक्त होना होगा, हमें वर्तमान में आना होगा, हर पल का आनंद लेना होगा ।
अब जरा सोचिए, हम कितनी बार गार्डन में घूमने जाते हैं पर वहाँ के पेड़ पौधों को देखने के बजाय, प्रकृति का आनंद लेने के बजाय, हम विचारों में खो जाते हैं । खुद से ही पूछिये, दिन भर में कितना समय मैं वर्तमान में होता हूँ और कितना समय सोचने में बिताता हूँ? क्या आपने गौर किया, हमारे ज्यादातर विचार वहीं होते हैं जिन पर हम ने कल भी विचार किया था, परसों भी विचार किया था, हफ्ते भर पहले भी विचार किया था और आज फिर हम उन्हीं विचारों के ऊपर विचार कर रहे हैं ।
इसलिए वर्तमान में आना होगा तथा अपनी ओवरथिंकिंग की आदत को (रिफ्लेक्टिव माइंड) तोड़ना होगा । वर्तमान में आने का अभ्यास करना होगा । हर बार हमारा मन ऑटो पायलट (रिफ्लेक्टिव माइंड) पर चला जाएगा, हमारा मन खुद-ब-खुद कुछ ना कुछ सोचने लगेगा, हमें फिर से उस मन को वर्तमान में लाना होगा । सोचने की इस गहरी आदत को तोड़ने के लिए, वर्तमान में रुकने की साधना करनी होगी । हम भविष्य में चले जाएंगे, अतीत में खो जायेंगे पर एक बार फिर से हमें वर्तमान में आना होगा । हमें डायरेक्ट माइंड में रहने का अभ्यास करना होगा ।
तो पुनः ऊपर पूछे गये २ सवालों को दोहराता हूँ ।
१. क्या हम रिफ्लेक्टिव माइंड को नियंत्रित कर उसे दिशा दे सकते हैं?
हाँ, हम अपने रिफ्लेक्टिव माइंड को नियंत्रित कर सकते हैं, उसे दिशा दे सकते हैं, एक स्वर्णिम भविष्य का निर्माण कर सकते हैं और उसके लिए हम एन.एल.पी. के टूल्स् इस्तेमाल करेंगे ।
२. ज़िन्दगी के हर पल को आनंद के साथ अनुभव करने के लिए क्या हम डायरेक्ट माइंड का या वर्तमान में रहने का अभ्यास कर सकते हैं?
हाँ, हम वर्तमान में आ सकते हैं, जीवन के हर पल को आनंद के साथ जी सकते हैं, अतीत के नकारात्मक अनुभवों को छोड़कर एवं भविष्य की चिंताओं को त्याग कर, इस पल में जो कुछ घट रहा है, उसका उत्सव मना सकते हैं और इसके लिए हम माइंडफुलनेस के टूल्स् का इस्तेमाल करेंगे ।
इस तरह से एम.बी.एन.एल.पी. (माइंडफुलनेस बेस्ड न्यूरो लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग) के जरिए हम ना सिर्फ स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करेंगे वरन् वर्तमान में घटनेवाली हर घटना को आनंद के साथ अनुभव भी करेंगे ।
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Sandip Shirsat
Creator of MBNLP, Founder & CEO of IBHNLP
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Summary:
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