एन.एल.पी. के वे दो आधारभूत सिद्धांत, जिनसे एन.एल.पी. के सारे टूल्स् बने
फंडामेंटल प्रिंसिपल्स ऑफ़ एन.एल.पी. (एन.एल.पी. प्रिसपोजिशन्स)
कई बार पूंछा जाता है कि एन.एल.पी. के आधारभूत सिद्धांत कौन से हैं? कौन से ऐसे मूलभूत विचार हैं, जिनके आधार पर एन.एल.पी. के टूल्स् और टेक्नीक बने हैं? एन.एल.पी. के टूल्स् और टेक्नीक की बुनियाद क्या है?
वैसे देखा जाए, तो एन.एल.पी. के मूलभूत सिद्धांतों को एन.एल.पी. में प्रिसपोजिशन्स कहा जाता है । मानसिक समस्याओं को सुलझाने के लिए तथा बेहतर भविष्य की तरफ अग्रसर होने के लिए एन.एल.पी. में जो सभी टूल्स् बनाये गये, उनके मूल में ये प्रिसपोजिशन्स है । वैसे तो एन.एल.पी. के अलग-अलग लेखकों ने अलग-अलग प्रिसपोजिशन्स लिखे हैं । किसी ने १० लिखे हैं, तो किसी ने २० । असल में, नीचे दिए हुए दो प्रिसपोजिशन्स एन.एल.पी. के सारे टूल्स् की नींव माने जाते हैं ।
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एन.एल.पी. प्रिसपोजिशन – १
नक्शा (मैप) ही वह प्रदेश नहीं हैं, जिसका वर्णन नक्शा कर रहा है । (The ‘map’ is not the ‘territory’ or the menu is not the meal.)
हम जिस दुनिया में जीते हैं, उस दुनिया को सीधे तौर पर समझने का कोई रास्ता नहीं है । ज़िन्दगी व्यतीत करते समय हम सब इस दुनिया का एक नक्शा अपने दिमाग में बना लेते हैं, जिससे इस दुनिया को समझने में हमें मदद मिलती है । यही नक्शा हमारे वर्तन को, भावनाओं को और अंततः जीवन को दिशा देता है, इसलिए इस दुनिया को हम जो प्रतिक्रिया देते हैं, वह प्रतिक्रिया यह दुनिया ‘जैसी है’ उस पर नहीं होती, यह प्रतिक्रिया हमारे दिमाग में इस दुनिया का जो नक्शा बना हुआ है, उससे निर्मित होती है ।
इस दुनिया का जो नक्शा हमारे दिमाग में बनता है, वह हमारी धारणाएँ, मूल्य, दृष्टिकोण, भाषा, अनुभव, यादें और हमारी पंचेन्द्रियों से जो जानकारी हम इकट्ठा करते हैं, उससे बनता है । आम भाषा में दिमाग में बनाने वाले इन नक्शों को हम ‘विचार’ कहते हैं । यह दिमागी नक़्शे हमारी पंचेद्रियों के साथ मिलकर हमारी मानसिकता को निर्मित करते हैं और इसी मानसिकता से हमारा व्यवहार प्रभावित होता है, परिणाम स्वरुप हमारी एक्शन निर्मित होती है ।
१९७० में डॉ. मॅक्सवेल, जो कि एक ख्यातीप्राप्त प्लास्टिक सर्जन थे, उन्होंने एक किताब लिखी, जिसका नाम था ‘सायको सायबरनेटिक्स’ । ‘प्लास्टिक सर्जन’ के तौर पर काम करते हुए, उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात नोटिस की । उन्होंने यह पता चला कि बहुत बार प्लास्टिक सर्जरी होने के बाद पेशेंट के व्यक्तित्व में कमाल के परिवर्तन हो जाते थे । एक छोटी सी प्लास्टिक सर्जरी और पेशेंट का आत्मविश्वास, उत्साह, सकारात्मक दृष्टिकोण, पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ जाता था । प्लास्टिक सर्जरी के बाद पेशेंट की स्वयं की ज़िन्दगी की तरफ देखने के नजरिये में मूलभूत परिवर्तन आ जाता था, ज़िन्दगी ज्यादा आनंद से भर जाती थी ।
किन्तु हर पेशेंट के साथ यह ‘व्यक्तित्व में सकारात्मक परिणाम’ देखने नहीं मिलते थे । कुछ पेशेंट ऐसे भी थे, जिन्हें प्लास्टिक सर्जरी के बाद कोई भी ‘सायकोलॉजिकल बेनिफिट’ नहीं मिला, ना उनका आत्मविश्वास बढ़ा और ना ही उत्साह । प्लास्टिक सर्जरी ने शारीरिक तौर पर उन्हें पूरा बदल कर रख दिया, पर मानसिक तौर पर इसका कुछ लाभ नहीं हो पाया था ।
जैसे कि एक अमीर परिवार की लड़की जो पूरी ज़िन्दगी भर निराश रही, चिंतित रही और लोगों से दूर रही, क्योंकि जन्म से उसका नाक टेढा था । प्लास्टिक सर्जरी के बाद उसे एक सुंदर नाक मिली, वह बहुत ज्यादा सुंदर दिखने लगी । बावजूद इसके, उस लड़की के ज़िन्दगी में कोई भी परिवर्तन नहीं आया । वह वैसे ही पूरानी लड़की रही जो निराश थी, चिंतित थी और लोगों से दूर भागती थी । सर्जरी के बाद भी उसका व्यवहार ठीक वैसा ही था, जैसे उसका नाक अभी भी टेढा है । सुंदरता मिलने के बावजूद ना उसमे आत्मविश्वास आया, ना वह खुश हो सकी और नाही उसका दृष्टिकोण सकारत्मक हुआ ।
प्लास्टिक सर्जरी से शारीरिक तौर पर पूरा परिवर्तन होने के बावजूद कुछ पेशेंट यही कहते रहे कि कुछ भी तो नहीं बदला या यह तो बहुत छोटा सा बदलाव है । असल में प्लास्टिक सर्जरी के बाद उन्हें देखकर उनके परिवार के लोगों को उन्हें पहचानने में भी दिक्कत होती थी, क्योंकि प्लास्टिक सर्जरी के बाद शारीरिक तौर पर उनमें बहुत बड़ा बदलाव होता था । शारीरिक तौर पर उनमें इतना बड़ा बदलाव होता था कि बाकी लोग उनमें हुए परिवर्तन से बहुत ही ज्यादा उत्साहित हो जाते थे पर पेशेंट कहता कि बहुत थोड़ा या ना के बराबर बदलाव है । सर्जरी के पहले और बाद वाले फोटो दिखाने के बाद भी वे ये मानने के लिए तैयार नहीं होते थे कि बहुत बड़ा बदलाव आया है ।
शारीरिक तौर पर इतना बड़ा बदलाव होने के बावजूद क्यों पेशेंट को वह बदलाव प्रतीत नहीं होता था? सबको अंतर दिखाता था, पर पेशेंट को कुछ भी महसूस क्यों नहीं होता था?
वर्षों के निरीक्षण के बाद डॉ. मॅक्सवेल ने निकर्ष निकाला कि यह इसलिए होता हैं, क्योंकि बाहरी तौर पर पेशेंट में जरूर बदलाव आए पर उनके अपने दिमागी नक़्शे में कोई परिवर्तन नहीं आया था । शारीरिक तौर पर पेशेंट की ज़िन्दगी में बदलाव तो आये थे पर मानसिक तौर पर पेशेंट वहीं पूराना इंसान बना रहा ।
संक्षेप में, जो नक्शा हम अपने दिमाग में बना लेते हैं, वह नक्शा निर्धारित करता है कि इस दुनिया को हम किस प्रकार से अनुभव करेंगे, जीवन में घटने वाली घटनाओं को हम किस मनोदृष्टी से देखेंगे, ज़िन्दगी व्यतीत करते समय कौन से विकल्प हमारे सामने मौजूद होंगे और किस प्रकार के रिसोर्सेस या संसाधान (अंदरूनी और बाह्य) हम इस्तेमाल कर पाएंगे । इस दुनिया का यह नक्शा, जो हमारे दिमाग में हम ने बना लिया है, वहीं हमारे जीवन जीने का तरीका बन जाता है । इतना ही नहीं, हर पल हमारा दिमाग अलग अलग मानसिक नक़्शे बनाता है और इन नक्शों के आधार पर हम अपनी ज़िन्दगी व्यतीत करते हैं, इसलिए हम सब एक ही दुनिया में रहने के बावजूद भी हमारी स्वयं की एक अलग दुनिया होती है । हम स्वयं की एक अलग वास्तविकता खडी करते हैं, जो दूसरों की वास्तविकता से पूरी तरह से अलग होती है ।
एक अन्य उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करते हैं । कुछ वर्षों पहले मेरे ऑफिस में काउंसलिंग के लिए स्मिता नामक एक महिला आई । शादी के पाँच वर्ष बाद उसका डिवोर्स हो चुका था और शादी के संदर्भ में उसका अनुभव बेहद दर्दनाक था । जब हमारी बातें शुरू हुई, तब स्मिता ने कहा, “सब मर्द एक जैसे होते हैं, उन्हें सिर्फ उनका स्वार्थ दिखाई देता है, वे औरतों का सिर्फ इस्तेमाल करते हैं, मैं मर्दों से सख्त नफरत करती हूँ ।”
अब स्मिता ने संबंधों के संदर्भ में जो मानसिक नक्शा बनाया, उस पर थोड़ा गौर करें । निश्चित रूप से यह मानसिक नक्शा बनने के लिए उसके अतीत में हुई घटनाएँ जिम्मेदार हैं, इसे हम नकार नहीं सकतें, किन्तु अब इस मानसिक नक़्शे को लेकर ज़िन्दगी आनंद से बिताना बेहद कठिन हो जाएगा । अब यह मानसिक नक्शा स्मिता को कभी भी प्रेम पूर्ण संबंध स्थापित नहीं करने देगा । शायद उसकी ज़िन्दगी में कोई ऐसा इंसान भी हो सकता है, जो स्मिता को हद से ज्यादा प्यार करे, पर स्मिता का मानसिक नक्शा कभी भी उसे वह प्यार देखने नहीं देगा, जो स्मिता की ज़िन्दगी में फिर से रौनक ला सकता है । संक्षेप में, अतीत में घटी हुई कुछ घटनाओं से बाद स्मिता ने एक मानसिक नक्शा बना लिया, अब उस मानसिक नक़्शे ने ही स्मिता को जकड़ कर रखा है । जब तक यह मानसिक नक्शा नहीं बदलता, तब तक आनंद पूर्ण संबंध स्थापित करना स्मिता के लिए लगभग असंभव होगा ।
मानवी ज़िन्दगी में कई बार हम भूल जाते हैं कि जो नक़्शे हम ने बनाये थे, वे सिर्फ नक़्शे थे और उन दिमागी नक्शों को ही हम असल प्रदेश या टेरीटरी मानने की भूल करने लगते हैं । वह दिमागी नक़्शे हमारी वास्तविकता बनने लगते हैं और कई बार गलत नक्शों के जरिये हम सही जगह पहुँचने का प्रयास करने लगते हैं, इससके सफल होने की संभावना ना के बराबर होती है । इसका मतलब ही यह हुआ कि इस दुनिया को समझने में सहुलीयत हो इसलिए हम ने इस दुनिया का एक नक्शा बनाया और दुर्भाग्य से उस नक़्शे ने ही हमें कैद कर लिया, इसलिए ‘नक्शा ही वह प्रदेश नहीं है, जिसका वर्णन नक्शा दे रहा है’, सिर्फ यह एक ‘एन.एल.पी. प्रिसपोजिशन’ समझने से जीवन में क्रांती आ सकती है । साथ ही साथ अगर इस प्रिसपोजिशन को आप सही मायने में जीवन में स्वीकार करेंगे, तो इससे आपकी ज़िन्दगी में नीचे लिखी हुई तीन बातें घटने लगेंगी ।
१. आप अपने नकारात्मक विचारों को गंभीरता से लेना बंद कर देंगे । आप अपने विचारों के प्रति सहज हो जाएंगे । इससे आपके विचार आपको तकलीफ देना बंद कर देंगे ।
२. आप अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीखेंगे, नकारात्मक भावनाओं को गैर जरूरी तवज्जो देना बंद कर देंगे ।
३. आप अपनी वास्तविकता को दूसरों के ऊपर थोपना बंद कर देंगे, क्योंकि आपको पता होगा कि हर कोई अपनी अलग वास्तविकता में जीता है और जरूरी नहीं कि दूसरे की वास्तविकता हर समय गलत ही रहे ।
एन.एल.पी. प्रिसपोजिशन २.
हमारा मन या दिमाग सिस्टम के अंतर्गत काम करते हैं । (Mind or Brain works under a system.)
जो कुछ हमारे दिमाग में होता है और अंततः जिससे हमारा जीवन प्रभावित होता है, वह सब कुछ एक सिस्टम के अंतर्गत काम करता है । अगर आप आनंदित हैं, तो आपके दिमाग में कुछ हो रहा है और जो कुछ भी हो रहा है, वह ऐसे ही नहीं हो रहा है, वह एक सिस्टम के तहत निर्मित हो रहा है । उदाहरण के तौर पर आपकी ज़िन्दगी में कुछ चेहरे ऐसे होंगे जिन्हें याद करने के बाद आपको अच्छा लगता है । अगर उन चेहरों को याद करने के बाद आपको अच्छा लगता है, तो यह एक सिस्टम के अंतर्गत हो रहा है, अगर कोई सिस्टम नहीं होता, तो आपको उन चेहरों को याद करने के बाद कभी कभी दुःख महसूस होना चाहिए था, कभी कभी अच्छा लगना चाहिए था तो कभी कभी निराशा महसूस होनी चाहिए थी । अगर हर बार उन चेहरों को याद कर के आपको अच्छा लगता है, तो इसका मतलब ही यह हुआ कि हमारे दिमाग में कोई सिस्टम काम कर रहा है । अगर सिस्टम काम कर रहा है, तो उस सिस्टम को समझा जा सकता है और उसे बदला भी जा सकता है ।
जैसे कि १० वर्ष पहले राजेश अपनी फैमिली के साथ एक झरना देखने गया । राजेश के साथ उसकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी थी । चारों ने उस झरने के नीचे नहाने का मन बना लिया और वे झरने में उतर गये । उनके साथ कुछ और लोग भी थे, जो वहाँ पर तैरने का और नहाने का आनंद ले रहे थे । राजेश और उसकी फैमिली एक दूसरे पर पानी फेंक रहे थे, हंसी मजाक चल रहा था, नहाने का आनंद लिया जा रहा था । किन्तु धीरे-धीरे पानी का बहाव बढ़ रहा हैं, इस पर किसी का ध्यान नहीं था ।
कुछ ही देर में पानी का बहाव इतना तेज हुआ कि राजेश और उसकी फैमिली उस बहाव में बहने लगे । किस्मत से वहाँ पर एक पेड़ था, उस पेड़ को उन्होंने पकड़ लिया, किन्तु उस पेड़ के आसपास पानी था, वहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था । पानी का बहाव इतना तेज था कि झरने को पार कर किनारे पर जाना भी संभव नहीं था । वे बहुत डर चुके थे, चिल्ला रहे थे, रो रहे थे । कुछ ही देर में गाँव वाले वहाँ जमा हुए, पुलिस आई, फायर ब्रिगेड के लोग आए और ६ घंटे की मशक्कत के बाद उन चारों को सही सलामत वहाँ से निकाला गया । आज १० वर्षों के बाद भी, राजेश को जब उस घटना की याद आती है, उसकी आँखें भर आती हैं, उसे बेहद बुरा लगने लगता है, डर उस पर हावी हो जाता है ।
इस घटना के संबंध में राजेश के भीतर जो कुछ भी हो रहा है, यह एक सिस्टम के तहत हो रहा है, उसका एक विशिष्ट स्ट्रक्चर है । दिमाग जब भी उस घटना को फिर से निर्मित करता है, तब उस घटना का एक स्ट्रक्चर दिमाग में बनता है, अगर हम उस स्ट्रक्चर या सिस्टम को समझ सके, तो हम उसे बदल सकते हैं । एन.एल.पी. में हम अपने अनुभव के इस सिस्टम या स्ट्रक्चर को समझने का प्रयास करते हैं और अलग-अलग टूल्स् और टेक्नीक के सहारे स्ट्रक्चर को बदल देते हैं । इससे हमारे दिमाग का सिस्टम हमारे हाथ में आ जाता है और हम अपने दिमाग को चलाने में सक्षम हो जाते हैं ।
एन.एल.पी. में जो मॉडल्स या टूल्स् या टेक्नीक विकसित हुई, वे सब इन दो प्रिसपोजिशन के आधार पर तैयार हुई है । एन.एल.पी. में हम यह मानकर चलते हैं कि मनुष्य के तौर पर हम ‘वास्तविकता या रियलिटी’ को जान नहीं सकते इसलिए कौन सा नक्शा सही है और कौन सा गलत यह हम दावे के साथ नहीं कह सकते । एन.एल.पी. में हम यह लक्ष्य रखते हैं की हमारे पास ज़िन्दगी का एक ऐसा नक्शा होना चाहिए जो संभावनाओं से भरा है, नये विकल्पों को निर्मित करता है, हमें आजाद करता है, जिससे हम नये व्यवहार के साथ आगे बढ़ सकते हैं, एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं । जो लोग प्रभावशाली होते हैं, वे वहीं लोग होते हैं, जिनका नक्शा सबसे ज्यादा संभावनाओं से और बेहतर दृष्टीकोण से भरा होता है । एन.एल.पी. टूल्स् के जरिये, हम स्वर्णिम भविष्य निर्माण की संभावनाओं को बढ़ाते हैं और इस दुनिया को देखने का बेहतर नजरिया हासिल कर सकते हैं ।
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एन्जॉय योर लाइफ एंड लिव विथ पैशन !
Mranal Gupta
NLP Master Trainer, Clinical Hypnotherapist, Director of IBHNLP
एन.एल.पी. के बारे में मास्टर ट्रेनर मृणाल गुप्ता द्वारा अलग-अलग पहलुओं से लिखे ब्लॉग्स पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक्स पर क्लिक कीजिए ।
Summary:
What are the fundamentals of NLP? NLP Presuppositions are called the fundamentals of NLP.
There are Two Basic Fundamentals:
01. The 'map' is not the 'territory' or The menu is not the meal.
02. Mind or Brain works under a system.
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