किस तरह से आपका मन समस्याओं को निर्मित करता है? पार्ट १
अनघा और मेरी पहली मुलाकात ९ वर्ष पहले हुई । उस समय अनघा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी । वह पढ़ाई में मुश्किलों का सामना कर रही थी, इसीलिए उसकी माँ उसे मेरे यहाँ काउंसलिंग के लिए लेकर आई । अनघा मेरे सामने बैठी । मेरी नजरों से नजरें मिलाने से भी वह कतरा रही थी । नीचे देख रही थी और हाथों में उसका जो पर्स था उसे खोल रही थी और बंद कर रही थी । उसकी अस्वस्थता इतनी स्पष्ट थी कि मैं उसे महसूस कर पा रहा था । मैंने कुछ इधर-उधर के सवाल पूछे किन्तु वह एक ही वाक्य दोहरा रही थी, ‘मुझे इंजीनियरिंग नहीं करनी है’ ।
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कुछ समय बाद उसने कहा, ‘कोलेज में मुझे घुटन होती है, मुझे नहीं लगता कि मैं एक बेहतर इंजीनियर बन पाऊंगी, मेरा भविष्य अंधकारमय दिख रहा है ।’ इसके बाद जैसे-जैसे काउंसलिंग आगे बढ़ती गयी अलग-अलग बातें सामने आने लगीं । धीरे-धीरे उसकी असल समस्या मुझे समझ में आने लगी । उसका डर उसके व्यक्तित्व पर हावी हो चुका था । वह भविष्य से डरी हुई थी जिसके कारण उसका वर्तमान रुक चुका था । उसकी समस्या को सुलझाने के लिए हम ने काम शुरू किया । कुछ हफ्तों में अनघा की मानसिकता पहले से बेहतर होने लगी । वह ज्यादा सकारात्मक महसूस करने लगी, उसने उत्साह के साथ पढ़ाई शुरू की और बेहतर भविष्य के निर्माण में जुट गयी । जल्द ही काउंसलिंग के सेशन भी खतम हो गये ।
४ वर्ष पहले एक दिन अचानक उसका फोन आया । अनघा को फिर से काउंसलिंग के लिए आना था । फोन पर ही उसने मुझे उसकी वर्तमान ज़िन्दगी के बारे कुछ बातें बताई । उसने कहा, “इंजीनियरिंग की पढाई खतम होने के बाद, उसकी शादी हो गयी थी । शादी को लगभग १ वर्ष हो चुका था । पति पत्नी में छोटे-मोटे झगड़े थे, जिनके चलते वह निराश हो चुकी थी । इतनी ज्यादा निराश हो चुकी थी कि रोजमर्रा के काम करने में भी उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था । हर वक्त नकारात्मक भाव उसे घेरे रहते थे । ज़िन्दगी में कुछ नया करने की इच्छा खतम हो चुकी थी । उसे लग रहा था कि वह ऐसे दलदल में फंस चुकी है, जहाँ से वह कभी भी बाहर नहीं निकल पाएगी ।
काउंसलिंग के सेशन में निराशा की उस भावना पर काम करना शुरू किया और धीरे-धीरे उसकी मानसिकता बेहतर होने लगी । इस निराशा को किस तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है और ज़िन्दगी में आगे बढ़ा जा सकता है, इसके लिए हम ने कुछ प्रयोग किये, जो बेहद सफल साबित हुए । जैसे ही उसकी मानसिकता बेहतर हुई, काउंसलिंग के सेशन भी खतम हो गये ।
कुछ दिनों पहले फिर से अनघा का फोन आया । उसने कहा कि वह जहाँ पर वह काम कर रही है, वहाँ पर उसका प्रदर्शन बेहद लचर है । वह स्वयं को साबित नहीं कर पा रही है । जिन अपेक्षाओं के साथ उसने काम की शुरुवात की थी, वे सारी अपेक्षाएँ गलत साबित हो रही हैं ।’ इन समस्याओं को हल करने के लिए उसे काउंसलिंग की जरुरत थी ।
अनघा का फोन कॉल पूरा होने के बाद, मेरे दिमाग में एक विचार आया । हम एन.एल.पी., हिप्नोसिस एवं लाइफ कोचिंग के माध्यम से अलग अलग समस्याओं पर काम कर रहे हैं, इससे बेहतर परिणाम भी मिल रहे हैं, पर क्या हम कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे किसी एक समस्या से छूटकारा होने की बजाय ‘समस्याओं को निर्मित करने वाले तंत्र या मेकैनिज्म’ से ही मुक्त हो जाए? खुद की मानसिकता के ऊपर छोटे-छोटे हिस्सों में काम करने के बजाय क्या हम अपनी ‘पूरी मानसिकता’ के उपर काम कर सकते हैं? जिस मन में ये समस्याएँ निर्मित हो रही हैं, क्या उस पूरे मानसिक तंत्र को ही छोड़ा जा सकता है?
यहाँ पर मैं एक या दो समस्याओं से स्वतंत्रता की बात नहीं कर रहा हूँ, जिस तंत्र (mechanism) से ये समस्याएँ निर्मित हो रही है, उस तंत्र से ही स्वतंत्र होने की बात कह रहा हूँ । संक्षेप में, ‘समस्याओं को निर्मित करनेवाली मानसिकता से स्वतंत्रता’ की बात कर रहा हूँ । इस लिए यह सवाल ही नहीं होता कि मुझे निराशा से मुक्त होना है, भय से स्वतंत्र होना है, डर से अलग होना है, तो उसके लिए क्या करना होगा? यहाँ पर असल सवाल यह है कि समस्याओं के संदर्भ में इन छोटे-छोटे हिस्सों में मिलने वाले समाधानों की जगह पर क्या हम समस्याओं को निर्मित करने वाले उस ‘मानसिक तंत्र’ से स्वतंत्र हो सकते हैं? और क्या इस तरह की स्वतंत्रता संभव है?
मेरी एक और क्लाइंट स्मिता के उदहारण के साथ इस पहलु को समझने की कोशिश करते हैं । कुछ वर्षों पहले बड़े धूमधाम से स्मिता की शादी हुई । अच्छे भविष्य के सपने लेकर स्मिता अपने ससुराल पहुंची । शुरुवाती दिन आनंद और मौज के साथ बीतें । समय के साथ धीरे-धीरे चीजें बदलती गयी । स्मिता और उसके पति के बीच झगड़े होने लगे । एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि पति ने उसके साथ मारपीट की ।
आखिरकार दोनों ने डिवोर्स लेने का निर्णय लिया । डिवोर्स की प्रक्रिया चल रही थी, कोर्ट कचहरी के चक्कर लग रहे थे, दिनों दिन झगड़े भी चल रहे थे । इसी बीच जो वकील स्मिता को मदद कर रहा था, वह उसे अच्छा लगने लगा । उस वकील की तरफ से इस संदर्भ में कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, वह सिर्फ उसका काम कर रहा था । इससे स्मिता और निराश हुई । यानी एक समस्या का समाधान होने से पहले ही दूसरी समस्या निर्मित हो चुकी थी ।
यह सिर्फ स्मिता की बात नहीं है, यह हम सब के साथ हो रहा है । एक समस्या का समाधान होने से पहले ही हमारा मन दूसरी समस्या को निर्मित कर लेता है । साथ ही साथ हमारा मन जिन समस्याओं को निर्मित करता है, वे समस्याएँ कई बार सिर्फ और सिर्फ हमारा भ्रम होती हैं । वास्तविकता में शायद ही कभी कोई समस्या होती हो, हमारा मन भविष्य के बारे में और अतीत के बारे में सोच सोच कर नयी समस्याएँ निर्मित कर लेता है ।
क्या हम मन के इस तंत्र को समझ सकते हैं, जो इस तरह से समस्याएँ निर्मित किये जा रहा है? क्या मन की इस अद्भूत क्षमता को जिससे अंतहीन समस्याएँ निर्मित हो रही हैं, समझा जा सकता है? क्या इस तंत्र को नियंत्रित किया जा सकता है?
इन सारे सवालों के बारे में हम अगले ब्लॉग में चर्चा करेंगे ।
आशा करता हूँ कि यह ब्लॉग आपको अच्छा लगा होगा, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । चलो तो फिर मिलते हैं अगले ब्लॉग में, तब तक के लिए ...
एन्जॉय योर लाइफ एंड लिव विथ पैशन !
Sandip Shirsat
Creator of MBNLP, Founder & CEO of IBHNLP
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Summary:
If you are searching for the answers to the following questions:
How can we solve problems in life? What is the best way to solve the problem? What are problems in life? What are some everyday struggles? How can I solve my personal problems in life? How to come out of problems in life? or any such question related to this, we need to understand the mechanism of mind & how does our mind create problems?
Understand the mechanism of the human mind. The human mind is the set of cognitive faculties including consciousness, imagination, perception, thinking, judgement, language and memory, which is housed in the brain (sometimes including the central nervous system). It is usually defined as the faculty of an entity's thoughts and consciousness. In simple language, with a few examples, we tried to understand how this mind gets into trouble with its own processes. If we want to live a happy & fulfilled life, we must understand the way it functions. Once we learn the structure or patterns in which human mind functions, its easier to control it.
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