खुद का ‘जीवन परिवर्तन’ इतना ज्यादा कठिन क्यों मालूम पड़ता है?
जब मैं छोटा था, तब हमारे पड़ोस में एक फेमिली रहा करती थी, पति-पत्नी और दो बच्चे । पति प्रति दिन शाम को घर आने के बाद छोटी-छोटी बातों पर पत्नी से झगड़ा शुरू कर देता था । हर रोज झगड़ा और झगड़े का अंत पत्नी के पिटने से होता था । हर रोज किसी ना किसी कारणवश झगड़े के बाद वह पत्नी को पीटता था । वह रोती थी, चिल्लाती थी, दया की भीख माँगती थी, पर जब तक उसका ग़ुस्सा ठंडा नहीं होता, तब तक वह उसे पीटता था । कभी खरोंच आती थी, कभी शरीर पर सूजन हुआ करती थी, कभी सिर फूटता था, तो कभी हाथ टूटता था । कभी-कभी इस झगड़े से तंग आकर पत्नी अपने मायके चली जाती थी, सब कुछ भूल कर नयी ज़िन्दगी शुरू करने का जज्बा लेकर । पर कुछ ही महिनों में यह जज्बा कहीं खो जाता था, वह फिर से पति के घर आ जाती थी और नये सिरे से झगड़ों का, पिटाई का, रोने का, सिलसिला शुरू । कई वर्ष तक ऐसा ही चलता रहा और अंत में वह इतनी निराश और हताश हो चुकी थी कि उसने आत्महत्या कर ली ।
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संभवतः पति को छोड़कर वह नया जीवन शुरू कर सकती थी, नए सिरे से खुद के भविष्य का निर्माण कर सकती थी, स्वयं के पैरों पर खड़ी हो सकती थी, पर ऐसा क्या हुआ कि वह खुद को बदलने में असफल रही? उसे पता था कि उसका पति नहीं बदलेगा पर वह खुद को बदल सकती थी, इस निराशा के चक्र को तोड़कर बाहर निकल सकती थी और खुद के जीवन को एक नयी दिशा दे सकती थी, पर ऐसा क्यों नहीं हो पाया?
इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें थोड़ा परिवर्तन या चेंज के बारे में सोचना होगा । हम परिवर्तन के बारे में क्या सोचते हैं, परिवर्तन के संदर्भ में हमारे विचार क्या हैं? उस पर हमें सोचना होगा । क्यों कभी-कभी ज़िन्दगी को बदलना इतना कठिन मालुम पड़ता है, क्यों कभी-कभी जीवन परिवर्तन असंभव लगने लगता है और क्यों कभी-कभी ये परिवर्तन बेहद जरूरी है यह मालूम होने के बाद भी कुछ भी नहीं होता, इसके ऊपर हमें थोड़ा विचार करना होगा । परिवर्तन जरूरी होने के बावजूद परिवर्तन को मुश्किल करने वाले कुछ कारणों के ऊपर हम चर्चा करेंगे ।
१. मुझे यह लगता है कि लोगों के जीवन परिवर्तन के संदर्भ में अगर कोई सबसे बड़ी बाधा है तो वह है उनका मन । यदि सटीकता से कहना होगा तो मैं कहूँगा कि ‘परिवर्तन के संदर्भ में बनी हुई उनकी धारणाएँ’ । जैसे कि हमें बचपन से यह सिखाया जाता है कि परिवर्तन आसान नहीं होता, इसके लिए बहुत ज्यादा प्रयास करना पड़ता है और समय भी ज्यादा लगता है पर ये हम से बोला गया अब तक का यह सबसे बड़ा झूठ है और इसी धारणा के कारण जीवन को परिवर्तित करना कठिन मालूम पड़ता है ।
इसीलिए जीवन परिवर्तन या जीवन में बदलाव आसान और जल्दी हो सकता है, इस पर यकीन होना चाहिए ।
२. कई बार ऐसा होता है कि लोग अपनी समस्याओं को जिंदा रखना चाहते हैं, क्योंकि उन समस्याओं के कारण उनको अनूठा होने का या महत्वपूर्ण होने का समाधान मिलता है । उन्हें लगता है कि वे दूसरों से अलग हैं, क्योंकि वह समस्याओं से घिरे हैं । कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जिन्हें यह साबित करना होता है कि उनकी समस्याओं पर कोई भी तकनीक काम नहीं कर सकती और उन्हें उनकी समस्याओं से बाहर निकलने की कोई भी आशा नहीं है ।
अतः क्या मेरी समस्या का वर्णन करते समय मुझे अच्छा लगता है? जब भी मुझे मौका मिलता है, क्या मैं मेरी समस्याओं का बढ़ा चढ़ाकर वर्णन करने लगता हूँ? क्या मुझे मेरी समस्याओं का रोना रोने की आदत लग चुकी है? इन सवालों के ऊपर विचार करना बेहद जरूरी है ।
३. अधिकांश बदलाहट इसीलिए नहीं होती, क्योंकि लोगों को लगता है कि उनकी समस्या परमानेंट है और जैसे ही यह धारणा बनी कि ‘यह समस्या पर्मनंट है’, लोग उस समस्या को सुलझाने का प्रयास करना बंद कर देते हैं, इससे समस्या और जटिल हो जाती है । इसी धारणा के चलते, उनकी समस्या धीरे-धीरे उनकी आइडेंटिटी या स्वपहचान बनने लगती है । जैसे ही कोई समस्या हमारी आईडेंटिटी या स्वपहचान बनी, फिर उसका समाधान खोजना बेहद कठिन हो जाता है ।
इसीलिए कोई भी समस्या परमानेंट नहीं होती, ‘समस्या की तरफ मैं जिस दृष्टिकोण से देख रहा हूँ, अगर मैं उस दृष्टिकोण को बदल देता हूँ, तो शायद उस समस्या में छिपे हुए अवसर मुझे दिखाई देंगे’, इस धारणा के चलते ज़िन्दगी बेहद आसान हो जाएगी ।
४. जब कोई समस्या जीवन में खड़ी होती है तो उस समस्या से निपटने के लिए हम एक योजना तैयार करते हैं, उस संदर्भ में एक काल्पनिक समाधान के बारे में सोचते हैं और कई बार होता यह है कि समस्या को निपटने के लिए जो योजना बनायी जाती है, जो समाधान लाया जाता है, वह समाधान नयी समस्याओं को जन्म देता है, जिससे पूरानी समस्या से तो हम बाहर नहीं निकल पाते, उल्टा नयी समस्या सामने आ खड़ी होती है ।
इसीलिए मेरी समस्या को सुलझाने के लिए मैंने जो समाधान सोचा है, क्या उस समाधान से नयी समस्या तो निर्मित नहीं होगी? इस सवाल पर सोचना होगा ।
परिवर्तन के संदर्भ में चार जरूरी धारणाएँ ।
१. परिवर्तन आसान और जल्दी हो सकता है ।
२. समस्या का वर्णन करने से ज्यादा मैं उसे सुलझाने में दिलचस्पी लेता हूँ ।
३. कोई भी समस्या परमानेंट नहीं होती ।
४. समस्या को सुलझाने के लिए जो समाधान मैंने सोचा है, मुझे पता है कि उनसे कोई नयी समस्या निर्मित नहीं होने वाली ।
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Mranal Gupta
NLP Master Trainer, Clinical Hypnotherapist, Director of IBHNLP , This Blog is edited by Mayank Kulshrestha
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Summary:
Is it really difficult to change our life?
In this blog, the author has easily explained the hindrances for solving problems in our own life. Four beliefs that must not be ignored while attempting to bring change,
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One must believe that bringing change is not a difficult task.
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One must identify if they are constantly cribbing about their problems and deriving pleasure in doing so.
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One must understand that no problem is permanent.
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One has to contemplate whether our solutions are giving birth to new challenges or not.
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